चाँदनी मुस्कुराते हुए चुप

किसकी अंगड़ाई से है उगी भोर ये, ढल गई रात, जब सब लगे पूछने
चांदनी मुस्कुराते हुए चुप रही, आपकी ओर केवल लगी देखने

पांव का नख , जहां था कुरेदे जमीं देखिये अब वहां झील इक बन गई
कुन्तलों से उठी जो लहर, वो संवर्निर्झरों में सिमटती हुई ढल गई
धूप मुस्कान की छू गई तो कली, अपने यौवन की देहरी पे चढ़ने लगी
जब नयन की सुराही झुकी एक पल, प्यालियों में स्वयं ही सुधा ढल गई

आपके इंगितों से बँधा है हुआ, सबसे आकर कहा सावनी मेह ने
चाँदनी मुस्कुराते हुए चुप रही, आपकी ओर केवल लगी देखने

आपके कंगनो की खनक से जुड़ी तो हवा गीत गाने लगी प्यार के
आपकी पैंजनी की छमक थाम कर मौसमों ने लिखे पत्र मनुहार के
चूम कर हाथ की मेंहदी को गगन सांझ सिन्दूर के रंग रँगने लगा
बँध अलक्तक से प्राची लिखे जा रही फिर नियम कुछ नये रीत व्यवहार के

आप जब रूक गये, काल रथ थम गया किस तरफ़ जाये सबसे लगा बूझने
किसकी अँगड़ाई से है उगी भोर ये, ढल गई रात अब सब लगे पूछने

2 comments:

Anonymous said...

बहुत सुन्दर

Shar said...

सुन्दर, सुन्दर, सुन्दर !!

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