रोलियों अक्षतों में रँगें आस को

इक नये वर्ष की ओढ़नी इढ़ कर
आई उषा की दुल्हन खड़ी द्वार पर
आओ अगवानी करने को आगे बढें
कामनायें चलें साथ श्रन्गार कर

विश्व कल्याण की रोलियां लें सजा
इक नई आस को अक्षतों में भरें
मुस्कुराहट के रंगीन कुसुमों तले
ज़िन्दगी की डगर हर सुगंधित करें
ईश की देन हर मानवी देह को
आओ मंदिर बना कर करें आरती
हर दिशा तान वीणा की छेड़े रहे
सांझ सरगम के नूपुर हो झंकारती

फ़ागुनी हो उमंगें बरसती रहें
हर घड़ी हर दिवस पूर्ण संसार पर

वैमनस्यों की रजनी जो अबकी ढले
फिर न देखे कभी भोर की रश्मियां
जो भी दीवार अलगाव की हैं खिंची
उनमें अपनत्व की आ खुलें खिड़कियां
पूर्ण वसुधा है इक, हम कुटुम्बी सभी
आओ इस बात को फिर से व्यवहार दें
हाथ अपने बढ़ाते चलें हम सभी
जो मिले राह में उसको बस प्यार दें

स्वप्न हर इक ढले शिल्प में, औ' गगन
गाये दिन रात पुष्पों की बौछार कर

आओ नव वर्ष की ले प्रथम नवकिरण
कुछ लिखें हम नया और संकल्प लें
नव प्रयासों के पाथेय की पोटली
साथ ले, नीड़ की नव डगर थाम लें
गान मधुपों के, झरनों के, कोयल के ले
कंठ का स्वर सभी का सजाते रहें
बाँटकर अपनी उपलब्धियों के सिले
ज़िन्दगी खूबसूरत बनाते रहें

आओ मिल कर रखें नींव अनुराग की
आज विश्वास के ठोस आधार पर
इक नये वर्ष की ओढ़नी ओढ़कर
आई उषा की दुल्हन खड़ी द्वार पर

राकेश खंडेलवाल
नववर्ष २००७

1 comment:

Udan Tashtari said...

इतने खुबसूरत संगीतमय स्वागत से नव वर्ष निश्चित रुप से आकर बहुत खुश होगा. ढ़ेरों शुभकामनायें.

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