एक ॠतुराज के पुष्प शर से झरी, पांखुरी देह धर सामने आ गई
चान्दनी सरगमों में पिघल कर घुली राग में शब्द को ढाल कर गा गई
जो कला मूर्त्तियों में ढली थी खड़ी, आज परदा स्वयं पर गिराने लगी
आपकी एक छवि कल्पना से निकल, दॄष्टि के पाटलों पे जो लहरा गई
चित्र जितने अजन्ता की दीवार पर थे टँगे देखते देखते रह गये
भ्रम जो सौन्दर्य के थे विमोहित किये,एक के बाद इक इक सभी ढह गये
तूलिका लाज के रंग में डूब कर फिर सिमटने लगी आप ही आप में
आप के चित्र को देखने नभ झुका आप सा है न दूजा सभी कह गये
शिल्प में घुल गई आज कोणार्क के, गंध वॄन्दावनों की उमड़ती हुई
प्यास को मिल गई स्वाति की बूँद ज्यों आज बैसाख के नभ से झरती हुई
पारिजाती सुमन से बने हार को, हाथ में ले शची आ खड़ी राह में
मौसमों के लिये रँग सब साथ में, आपके चित्र में रंग भरती हुई
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14 comments:
चित्र जितने अजन्ता की दीवार पर थे टँगे देखते देखते रह गये
भ्रम जो सौन्दर्य के थे विमोहित किये,एक के बाद इक इक सभी ढह गये
तूलिका लाज के रंग में डूब कर फिर सिमटने लगी आप ही आप में
आप के चित्र को देखने नभ झुका आप सा है न दूजा सभी कह गये
--वाह!! गज़ब!! छा गये महाराज!! जबरदस्त रहा!....बहुत खूब.
सुँदर शिल्प,
सुँदरतर शब्द
और सुँदरतम भाव..
ये कविराज की
लेखनी का ही कमाल है :)
-लावण्या
आप की कविताओं पर क्या कहूं ...... सिवा इस के कि मगन कर देरी हैं ये मुझ को. प्रवाह में बह जाता हूँ.. आप को पढ़ना बहुत सुखद अनुभव है.
adbhut shabd-shilp.bus aur kya likhu kalam laaz ke rang me.... sunder rachna
वाह ! क्या प्रस्तुति है सुन्दरता की !
सुंदरतम भाव को सुंदरतम शब्दों में सुंदरता के साथ पिरोया है आपने।
बधाई.
बेहद खूबसूरत...
बहुत ही सुंदर.
प्यारा गीत. अच्छा लगा पढ़ कर.
जो कला मूर्त्तियों में ढली थी खड़ी, आज परदा स्वयं पर गिराने लगी
आपकी एक छवि कल्पना से निकल, दॄष्टि के पाटलों पे जो लहरा गई
अध्भुत रचना..
आपकी रचनाओं पर टिप्पणी करने में बहुत साहस चाहिये होता है। सूरज को दीप दिखाना ही है...आप जैसे गीतकार अब साहित्यजगत में विलुप्तप्राय है..
***राजीव रंजन प्रसाद
बहुत बहुत बधाई हो भाई साहब ,
आनंद आ गया
वैसे मैं भी ऊपर राजीव रंजन जी के कमेंट से शत प्रतिशत सहमत हूँ की
आपकी रचना पे टिप्पणी करना आसान नहीं है
फिर भी अनन्य शुभकामनाओं सहित ये पँतियाँ स्वीकार करे
आपके सब गीत - कविता हैं उजाले की किरण
आपके सब शब्द लाते हैं , अनूठा जागरण
जगमगाते हैं सितारे आपके विशवास पर
आप सूरज की तरह हो ,शब्द के आकाश पर
आप जैसा शब्द का साधक नहीं है दूसरा
है असंभव आप जैसी , शारदे की साधना
कर रहे हैं आज प्रेषित सब ह्रदय की भावना
दे रहे हैं आज सारे आपको शुभकामना
पारिजाती सुमन से बने हार को, हाथ में ले शची आ खड़ी राह में
मौसमों के लिये रँग सब साथ में, आपके चित्र में रंग भरती हुई
बहुत अच्छा लिखा है।
भ्रम जो सौन्दर्य के थे विमोहित किये,एक के बाद इक इक सभी ढह गये
तूलिका लाज के रंग में डूब कर फिर सिमटने लगी आप ही आप में
आप के चित्र को देखने नभ झुका आप सा है न दूजा सभी कह गये
क्या कहे अब ..बहुत बहुत सुंदर लगी यह पंक्तियाँ
hum to aapko padhkar seekhtey hai ...rakesh ji...bahut bahut aabhaar
Very good......
beautiful.......
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