महका करते चन्दन वन

निशा झरे तेरे कुंतल से ,मुस्कानों से संवरे भोर
गंध देह की तेरे लेकर महका करते चन्दन वन

तेरी पायल जब जब खनक
अम्बर में उग आयें सितार
तेरी चूनर को छू छू कर
संध्या अपनी मांग संवारे

तू गाये तो वंसी की धुन से गूंजे सारा वृन्दाव
गंध देह की तेरे लेकर महका करते चन्दन वन

जब भी तेरा रूप निहार
आँखें बंद उर्वशी कर ले
और मेनका परछाईं क
ले तेरी आभूषण कर ले

तेरे लिए देव भी करते अनुष्ठान जप और हवंन
गंध देह की तेरे लेकर महका करते चन्दन

नयनों से परिभाषित होतीं
महाकाव्य की भाषाए
तुझ से प्राप्त प्रेरणा करतीं
मन की सब अभिलाषाएं

तेरे अधरों पर रामायण,वेद और गीता पाव
गंध देह की तेरे लेकर महका करते चन्दन वन

समय शिला पर तेरे कारण
चित्रित हुई अजंता है
मीनाक्षी के शिल्पों क
आकार तुझी से बनता  है

एलोरा कोणार्क सभी में अंकित है तेरे चितवन
गंध   देह की तेरे लेकर महका करते चन्दन वन

6 comments:

विवेक सिंह said...

बहुत मोहक गीत है ।

कहीं कहीं जल्दी छपने के निशान दिख रहे हैं ।
आशा है संपादन हो रहा होगा ।

Sunil Kumar said...

नयनों से परिभाषित होतीं
महाकाव्य की भाषाए
तुझ से प्राप्त प्रेरणा करतीं
मन की सब अभिलाषाएं
तेरे अधरों पर रामायण,वेद और गीता पाव
सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

Padm Singh said...

तेरे अधरों पर रामायण,वेद और गीता पाव
गंध देह की तेरे लेकर महका करते चन्दन वन

मोहक गीत ... हमेशा की तरह

विनोद कुमार पांडेय said...

तू गाये तो वंसी की धुन से गूंजे सारा वृन्दाव
गंध देह की तेरे लेकर महका करते चन्दन वन

बहुत खूब..राकेश जी बेहतरीन अभिव्यक्ति.....सुंदर रचना प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक आभार

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी भावभीनी सुगन्ध बिखराते शब्द।

Shardula said...
This comment has been removed by the author.

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