नयनों के कागज़ पर सपने लिखते आकर नित्य कहानी
नई स्याहियां नया कथानक, बातें पर जानी पहचानी
नदिया का तट, अलसाया मन और सघन तरुवर की छाया
जिसके नीचे रखा गोद में अधलेटे से प्रियतम का सर
राह ढूँढ़ती घने चिकुर के वन में उलझी हुई उंगलियां
और छेड़तीं तट पर लहरें जलतरंग का मनमोहक स्वर
और प्यार की चूनरिया पर गोटों में रँग रही निशानी
भीग ओस में बातें करती हुई गंध से एक चमेली
सहसा ही यौवन पाती सी चंचल मधुपों की फ़गुनाहट
नटखट एक हवा का झोंका, आ करता आरक्त कली का
मुख जड़ चुम्बन, सहसा बढ़ती हुई अजनबी सी शरमाहट
और मदन के पुष्पित शर से बिंधी आस कोई दीवानी
मांझी के गीतों की सरगम को अपने उर से लिपटाकर
तारों की छाया को ओढ़े एक नाव हिचकोले खाती
लिखे चाँदनी ने लहरों को, प्रेमपत्र में लिखी इबारत
को होकर विभोर धीमे से मधुरिम स्वर में पढ़ती गाती
सुधि वह एक, दिशाओं से है बाँट रही उनकी वीरानी
अर्थ हम ज़िन्दगी का न सम
अर्थ हम ज़िन्दगी का न समझे कभी
दिन उगा रात आई निकलती रही
उम्र थी मोमबत्ती जली सांझ की
रात के साथ लड़ते पिघलती रही
मुट्ठियाँ बाँध कर प्राप्त कर पायें कुछ
हाथ आगे बढ़े छटपटाते रहे
जो मिला साथ, याचक बना था वही
आस सूनी निरन्तर कलपती रही
हम न कर पाये अपनी तरफ़ उंगलियाँ
दोष बस दूसरों पर लगाते रहे
अपने दर्पण का धुंआ न देखा जरा
बस कथा तारकों की सुनाते रहे
गल्प की सीढ़ियों पर चढ़ा कल्पना
हम नयन को सजाते रहे स्वप्न से
कर न पाये है श्रॄंगार मुस्कान का
आंसुओं का ही मातम मनाते रहे
बोध अपराध का हो न पाया कभी
रश्मियां हमने खुद ही लुटाईं सदा
भेजे जितने निमंत्रण थे मधुमास ने
द्वार से हमने लौटा दिये सर्वदा
लौट आती रहीं रिक्त नजरें विवश
शून्य में डूभ जाते क्षितिज से सदा
सान्त्वना का भुलावा स्वयं को दिया
भाग्य में अपने शायद यही है बदा
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राग बासंती सुनाने आ रही है
ढूँढतीं हों उंगलियाँ जब पथ दुपट्टे की गली में
पाँव के नख भूमि पर लिखने लगें कोई कहानी
दृष्टि रह रह कर फिसलती हो किसी इक चित्र पर से
सांस में आकर महकने लग पड़े जब रातरानी
तब सुनयने जान लेना उम्र की इस वाटिका में
एक कोयल राग बासंती सुनाने आ रही है
फूल खिलते सब,अचानक लग पड़ें जब मुस्कुराने
वाटिकाएं झूम कर जब लग पड़ें कुछ गुनगुनाने
झनझनाने लग पड़ें पाजेब जब बहती हवा की
और मन को लग पड़ें घिरती घटा झूला झुलाने
उस घड़ी ये जान लेना प्रीत की सम्भाशीनी तुम
कोई रुत छू कर तुम्हें होती सुहानी जा रही है
देख कर छवि को तुम्हारी,लग पड़े दर्पण लजाने
झुक पड़े आकाश,छूने जागती अँगड़ाइयों को
भित्तिचित्रों में समाने लग पड़े आकाँक्षायें
शिल्प मिलने लग पड़े जब काँपती परछाइय़ों को
जान लेना तब प्रिये, नव भाव की जादूगरी अब
कोई अनुभव इक नया तुमको कराने जा रही है.
आपके पाँव की झान्झारों से गिरी
चांदनी ओढ़ कर चांदनी रात में आप आये तो परछइयां धुल गई
आपके पाँव की झान्झारों से गिरी जो खनक ,मोतियों में वही ढल गई
भोर की वे किरण दिन पे ताला लगा,थी डगर पर गई सांझ की घूमने
आपको देखने की उमंगें संजो,रात की वे बनी खिड़कियाँ खुल गई
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भोजपत्रों पे लिक्खे हुए मंत्र थे,ओस बन कर गिरे शतदली पत्र पर
शिव तपोभंग को एक उन्माद सा छा गया फिर निखरते हुए सत्र पर
विश्वामित्री तपस्याएँ खंडित हु ई आपकी एक छवि जो गगन में बनी
आपका नाम बन सूर्य की रश्मियाँ हो गई दीप्तिमय आज सर्वत्र पर
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नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
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