ये नया  वर्ष आकर हमें कह रहा आज हम कुछ नई कामनाएं करें
प्रीत अभिमंत्रिता हम सुधाएं लिए आज हर इक खुली आंजुरि को भरें
हर बरस जो बिखर खंडहर हो गई आस के सारे अवशेष चुनते हुए
अपने संकल्प नूतन सजाते हुए कोई निर्माण नूतन सभी मिल करें

कामना इस वरस धर्म के नाम पर
कोई भी और अब ना नृशंसी बने
सोच संदूकची में सिमट न रहे
हर बशर वासुधैकं कुटुम्बी बने
अपने घर से जड़ों से न उजड़े कोई
हर शर देश हर एक परिवार हो
कोई दीवार खिंच ना सके अब कहीं
हर गली गाँव पूरा खुला द्वार हो

सीरिया में अमन के कबूतर उड़ें
कोई अब और शरणार्थी न बने

हो वो पेरिस या हो सेन बरनारडिनो
या कि माली न दुहराये जायें कभी
एक अम्बर की चादर की छाया तले
एक मंज़िल के पथ पर चलें मिल सभी
गिरजे मंदिर में मस्जिद सिनेगॉग में
लेश भर भी नहीं मन मुटावा बढे
एक ही पाठ हो एक सन्देश हो
चाहे भाषा कोई भी लिखें या पढ़े

धर्म की आड़ ले और खुद्गर्जियां
इस बरस अपने उल्लू न सीधे करें

इस नए वर्ष में कुछ नई सोच हो
कामनाएं मेरी नव हों, हों आप की
पूर्ण जगती में बढ़ जाए सद्भावना
संतुलन में रहे विश्व का ताप भी
हर दिवस ले के आये नई रौशनी
हर घिरी रात नूतन सपन आंज ले
दिन की तख्ती लिखे नित कथानक नए
और होकर मुदित मन उन्हें बांच ले

कामना है यही इस नए वर्ष में
नव सुधा बिंदु ही बादलों से झरें

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