एक पृष्ठ कुछ मुड़ा हुआ है

तुम्हें भेंट में दी जो पुस्तक उसे खोल कर जब देखोगे
पाओगे तब कहीं मध्य में एक पृष्ठ कुछ मुड़ा  हुआ है

उस पुस्तक के पन्नों में हैं अंकित युग की प्रेम कथाएं
जगन्नाथ के सAथ लवंगी, बाजीराव और मस्तानी
रांझा हीर कैसे लैला के साथ साथ नल औ दमयंती
और उर्वशी से पुरुरवा के रिश्ते की प्रीति कहानी

शायद तुम लिखना चाहोगे इक परिशिष्ट उसी पुस्तज में
उस रिश्ते का हम दोनों के मध्य कहीं जो जुड़ा हुआ है

मुड़ा हुआ वह एक पृष्ठ है बन कर तीर जहां संधानित
वहां हमारे संबंधो की तकली कात रही है धागे
जन्म जन्म के एक सूत्र की मिल कर जोड़ रहे वो डोरी
अभिमंत्रित हों लेख भाग्य के वही कहीं नींदों सेजागे 

शिलालवख बन जुड़ा  हुआ हर एक कथानक उस पुस्तक में
जो की व्यस्तता के गतिक्रम में सुधियों में गुड़मुड़ा हुआ है 

कोरे पन्नों में उभरेगा कल इतिहास बना सोन हरा
जहाँ आज के पल पर होंगे हस्ताक्षर ओ मीट तुम्हारे
दिशाबोध बन जाएंगे वे आगत में हर असमंजस को
कभी अगर रसमय सुधियों पर घिरे संशयों के अंधियारे

हो लेगा विश्वास प्रीत का एक बार फिर से चट्टानी
कृत्रिमता में उलझ उलझ जो अभ्रक सा भुडभुडा  हुआ है 

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

आदर्शों के ऊँचे शिखरों के गहरे प्रतिबिम्ब बने हम...

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