इश्क़ के रंग में

मौसमों ने तकाजा किया द्वार आ
उठ ये मनहूसियत को रखो ताक पर
घुल रही है हवा में अजब सी खुनक
तुम भी चढ़ लो चने के जरा झाड़ पर
गाओ पंचम में चौताल को घोलकर
थाप मारो  जरा जोर से  चंग  में
लाल नीला गुलाबी हरा क्या करे
आओ रंग दें तुम्हें इश्क  के रंग में

आओ पिचकारियों में उमंगें भरे
मस्तियाँ घोल ले हम भरी नांद में
द्वेष की होलिका को रखे फूंक कर
ताकि अपनत्व आकार छने भांग में
वैर की झाड़ियां रख दे चौरास्ते
एक डुबकी लगा प्रेम की गैंग में
 कत्थई बैंगनी को भुला कर तनिक
आओ रंग दें तुम्हे इश्क़ के रंग में

बड़कुले कुछ बनायें नये आज फ़िर,
जिनमें सीमायें सारी समाहित रहें
धर्म की,जाति की या कि श्रेणी की हों 
वे सभी अग्नि की ज्वाल में जा दहें
कोई छोटा रहे ना बड़ा हो कोई
आज मिल कर चलें साथ सब संग में
छोड़ ं पीत, फ़ीरोजिया, सुरमई
आओ रंग दें तुम्हें इश्क  के रंग में 

आओ सौहार्द्र के हम बनायें पुये
और गुझियों में ला भाईचारा भरें
कृत्रिमी  सब कलेवर उठा फ़ेंक दें
अपने वातावरण से समन्वय करें
जितना उल्लास हो जागे मन से सदा
हों मुखौटे घिरे हैरतो दंग में
रंग के इन्द्रधनु भी अचंभा करें
आओ रंग दें तुम्हें इश्क के रंग में

No comments:

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...