अनुमति
बदली की पायल से बिखरी हैं सुर बन कर जो सरगम के
उन्हें कहू मैं चिकुर सिंधु मे छितराये अमोल कुछ मोती
दामिनियों की पेंजनियों से हुई परावर्तित किरणें है
उन्हें कहू मैं चिकुर सिंधु मे छितराये अमोल कुछ मोती
दामिनियों की पेंजनियों से हुई परावर्तित किरणें है
उन्हें नाम दूं उस चितवन का ढली साँझ जो चितवित होती
नए कोष के पृष्ठ अभी तो सारे के सारे हैं कोरे
परिभाषा की नई नई परिभाषा से उनको रंग डालूँ
चढ़ती हुई रात की बगिया के सुरमाये से झुरमुट से
तोडू फूल और फिर गूंथू कुछ की वेणी कुछ के गजरे
अम्बर में खींचा करती हैं मन्दाकिनिया जो रांगोली
उसको बना बूटियाँ कर दूं रंग हिनाई ज्यादा गहरे
तोडू फूल और फिर गूंथू कुछ की वेणी कुछ के गजरे
अम्बर में खींचा करती हैं मन्दाकिनिया जो रांगोली
उसको बना बूटियाँ कर दूं रंग हिनाई ज्यादा गहरे
पुरबा के अल्हड झोंके सा लहराता यह गात तुम्हारा
अनुमति दो तो भित्तिचित्र कर इसको अपने स्वप्न सजा लूँ
उगी धूप जो ओससिक्त पाटल पर करती है हस्ताक्षर
उसको दे विस्तार बना दूँ एक भूमिका नई ग़ज़ल की
खिड़की के शीशों पर खिंचती हुई इंद्रधनुषी रेखाएं
उन्हें बनाऊं भंगिम स्मितियाँ , अधर कोर से जो हैं छलकी
दिनं के पन्नों पर दोपहरी, संध्या नाम लिखा करती जो
अनुमति हो तो उसे तुम्हारा कह कर नव इतिहास बना लूँ
2 comments:
वाह!!
वाह अति सुंदर
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