तूमन केवल स्वप्न ही दिये

तुमने मुझको स्वप्न कुछ दिए
लेकिन तुमने स्वप्न ही दिए

​नील 
 गगन के परे सुवासित औ 
​पुष्पित 
राहों 
​के 
निज पाशों में  रखे बाँध कर हर पल उन  बाहों के 
धवल चाँदनी  में अंगड़ाई ले, संदली हवा के 
सांस सांस भर तृप्ति प्राप्त करती, बढ़ती चाहों के 

रहा खोजता मैं उत्तर, पर 
तुमने केवल प्रश्न ही दिए 

प्रश्न स्वप्न की इस दुनिया का पथ है शुरू कहाँ से
जो सभाव्य बताते उसको संभव करे जहाँ से
प्रतिबिम्बो के आकारों के आयामों को नापें
आदि अंत की रेखाओं का कर दें अंत कहाँ पे

मांगीमाल उत्तरों वाली
तुमने मुझको यत्न ही  दिए

यत्न किये निशि वासर इन लंबी राहों पर चलते
जिन पर कभी मंज़िलों के साये भी आ न पड़ते
होते है आरम्भ, अंत  पर जिनका कही नहीं है
और नीड भी संध्या के, पाथेयो में ही ढलते

परिणति की अभिलाषाओं को
अंतशेष भी भग्न ही दिए

 
तूमन केवल स्वप्न ही दिये

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