अधूरी गाथा

पॄष्ठ रहे सब के सब कोरे, सुध-बुध बिसरा कलम सो गई
शब्द भाव के बीच निरंतर, बढ़ती रही बीच की दूरी
करते करते यत्न थक गया, पर अंतिम अध्याय न लिखा
जीवन के इस रंगमंच की हर गाथा रह गई अधूरी.

तुम-केवल तुम

भोर आती रही, रात जाती रही
काल का चक्र तुम से ही चलता रहा

एक तन्हाई लेकर तुम्हारी छवि
दस्तकें साँझ के द्वार देती रही
नीड को लौटते पँछियों की सदा
नाम बस इक तुम्हारा ही लेती रही
धुन्ध बढती हुई, दिन छिपे, व्योम में

आकॄति बस तुम्हारी बनाती रही
याद बन कर दुल्हन, रात की पालकी
बैठ, कर सोलह श्रन्गार आती रही

स्वप्न बीते दिनों को बना कूचियाँ
आँख के चित्र रंगीन करता रहा

लेके रंगत तुम्हारे अधर की उषा
माँग प्राची की आकर सजाती रही
पाके सरगम तुम्हारे स्वरों से नई
कोयलें प्यार के गीत गाती रहीं
ले के थिरकन तुम्हारे कदम से नदी
नॄत्य करती हुई खिलखिलाने लगी
गन्ध लेकर तुम्हारे बदन की हवा
मलयजी; वादियों को बनाने लगी

आसमाँ पा तुम्हारी नयन-नीलिमा
अपने दर्पण में खुद को निरखता रहा

जो तुम्हारे कदम के निशाँ थे बने
मन-भरत को हुए राम की पादुका
भाव घनश्याम बन कर निहारा किये
तुम कभी रुक्मिणी थीं कभी राधिका
चित्र लेकर तुम्हारे अजन्ता बनी
बिम्ब सारे एलोरा को तुम से मिले
हैं तुम्ही से शुरू, हैं तुम्ही पर खतम
प्रेम-गाथाओं के रंगमय सिलसिले

एक तुम ही तो शाश्वत रहे प्राण बस
चाहे इतिहास कितना बदलता रहा

थरथराये अधर, जल तरंगें बजीं
सरगमें सैकडों मुस्कुराने लगीं
तुमने पलकें उठा दॄष्टि डाली जरा
हर दिशा दीप्ति से जगमगाने लगी
धूप मुस्कान की जो उगी होंठ से
मन्दिरों में हुई मँगला आरती
पैंजनी की खनक,जैसे वीणा लिये
तान झंकारने हो लगी भारती

इन्द्रधनुषी हुए रंग सुधि के सभी
चित्र हर कल्पना का सँवरता रहा


राकेश खंडेलवाल


आप-अंतराल के पश्चात

नैन में आपके है अमावस अँजी, और पूनम है चेहरे पे इठला रही
ताप्ती नर्मदा और गोदावरी, चाल का अनुसरण हैं किये जा रही
एक संदल के झोंके में घुल चाँदनी आपकी यष्टि के शिल्प में ढल रही
आपके होंठ छू वादियों में हवा, प्यार के गीत नव आज है गा रही.

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...