गीत करके लिखूँ

चाँदनी, फूल की गंध, पुरबाईयाँ; सोचता मैं रहा, प्रीत करके लिखूँ
पैंजनी और लहरों की अँगड़ाईयाँ, बांसुरी का मैं संगीत करके लिखूँ
रूक गई पर कलम आपके नाम पर, पॄष्ठ पर मैने प्रारंभ में जो लिखा
आपके नाम में सब समाहित हुआ,शेष क्या? फिर जिसे गीत करके लिखूँ

3 comments:

पंकज सुबीर said...

आपके नाम में सब समाहित हुआ,शेष क्या? फिर जिसे गीत करके लिखूँ
राकेश जी अभिनव के द्वारा लगाए गए आपके सिएटल यात्रा के फोटो देखे अच्‍छे लगे और आपकी कविता के बारे में तो ऐसा लगता है कि अब प्रशंसा करना छोड़ना ही होगा । कब तक कोई एक ही काम करेगा । आपके नाम में सब समाहित हुआ,शेष क्या? फिर जिसे गीत करके लिखूँ

mamta said...

छोटी पर सुन्दर कविता।
पंकज जी की बात से भी सहमत है।

कंचन सिंह चौहान said...

pankaj ji ne to vahi kah diya jo mai kab se kahna chahati hu.n

आपकी कविता के बारे में तो ऐसा लगता है कि अब प्रशंसा करना छोड़ना ही होगा । कब तक कोई एक ही काम करेगा । आपके नाम में सब समाहित हुआ,शेष क्या? फिर जिसे गीत करके लिखूँ

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