उनकी मात नहीं होती है

कोई साथ नहीं चलने को, लेकिन जब संकल्प लिया है
थक कर कहीं बैठ जाना तो अच्छी बात नहीं होती है

हाँ मीलों के पत्थर अक्सर ही उपहास उड़ाया करते
कभी कभी संशय होता है क्यों आगे को यह पग बढ़ते
लेकिन गति तो चेतनता है, उससे कहां विलग होना है
छलना के पल आ राहों को सही दिशा से वंचित करते

लेकिन शाह जिन्होंने तोड़ी हैं चौखानों की सीमायें
शह लगती हों चाहे जितनी, उनकी मात नहीं होती है

दो मुट्ठी में, दो पाथेय सजा कर चलना तो अच्छा है
और किया जो निश्चय वह भी, अनुमोदन करता सच्चाहै
पर यह पथ है बिना नीड़ के, चलते रहें अनवरत निश्चित
तो दो पल थम जाने का निर्णय भी हो जाता कच्चा है

मैं भी दीप जला कर पथ में इसीलिये हूँ साथ तुम्हारे
जिसकी सुबह नहीं हो कोई ऐसी रात नहीं होती है.

ओ राही ! पथ की विस्तॄतता देती है तुमको आवाज़ें
अंबर का आँगन आमंत्रित करता उठ कर लो परवाज़ें
रामचरितमानस ही रचकर रुकती कहाँ कलम तुलसी की
उतनी चमक और बढ़ती है जितना ज्यादा इसको माँजें


अवरोधों की झंझाओं से, बुझती नहीं ज्योति निश्चय की
यह वड़ की जड़ है, पतझड़ का सूखा पात नहीं होती है

5 comments:

Udan Tashtari said...

एक एक पंक्ति बारंबार पढ़ने को जी करता है:

ओ राही ! पथ की विस्तॄतता देती है तुमको आवाज़ें
अंबर का आँगन आमंत्रित करता उठ कर लो परवाज़ें
रामचरितमानस ही रचकर रुकती कहाँ कलम तुलसी की
उतनी चमक और बढ़ती है जितना ज्यादा इसको माँजें

--वाह!! अति सुन्दर.

Dr.Bhawna Kunwar said...

मैं भी दीप जला कर पथ में इसीलिये हूँ साथ तुम्हारे
जिसकी सुबह नहीं हो कोई ऐसी रात नहीं होती है.


बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं बहुत खूब, बधाई स्वीकारें ...

Anonymous said...

Very very beautuful and positively inspiring takes all fatigue away and fills with new zeal and vigour to take on. Best wishes Prem Gupta

कंचन सिंह चौहान said...

हाँ मीलों के पत्थर अक्सर ही उपहास उड़ाया करते
कभी कभी संशय होता है क्यों आगे को यह पग बढ़ते
लेकिन गति तो चेतनता है, उससे कहां विलग होना है
छलना के पल आ राहों को सही दिशा से वंचित करते

लेकिन शाह जिन्होंने तोड़ी हैं चौखानों की सीमायें
शह लगती हों चाहे जितनी, उनकी मात नहीं होती है

sach.....!

रंजू भाटिया said...

हाँ मीलों के पत्थर अक्सर ही उपहास उड़ाया करते
कभी कभी संशय होता है क्यों आगे को यह पग बढ़ते
लेकिन गति तो चेतनता है, उससे कहां विलग होना है
छलना के पल आ राहों को सही दिशा से वंचित करते

bahut hi sundar rachana likhi hai aapne rakesh ji ..badhaai

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