तुम उनवान गज़ल का मेरी बन कर एक बार आओ तो

मीत अगर तुम साथ निभाओ तो फिर गीत एक दो क्या है
मैं सावन बन कर गीतों की अविरल रिमझिम बरसाऊंगा

मीत तुम्ही तो भरते आये शब्दों से यह रीती झोली
तुमने ही तो बन्द निशा के घर चन्दा की खिड़की खोली
तुमने मन की दीवारों को भित्तिचित्र के अर्थ दिये हैं
सुधियों की प्यासी राहों में तुमने अगिन सुधायें घोलीं

तुम अपनी यों स्नेह-सुधा से करते रहो मुझे सिंचित तो
क्यारी क्यारी में छंदों के सुर्भित फूल उगा जाऊंगा

तुम दे दो विश्वास मुझे, मैं चन्दा बुला धरा पर लाऊं
दे दो रंग, तूलिका बन कर मैं पुरबाई को रँग जाऊं
एक इशारा दो दीपक में जलूं शिखा बन कर मैं खुद ही
तुम तट बन कर साथ निभाऒ, मैं लहरों के सुर में गाऊं

तुम जो देते रहो दिशायें तो मैं नई राह पर चल कर
पद चिन्हों के प्रतिमानों को नये अर्थ दे कर जाऊंगा

यौं है विदित ह्रदय के मेरे प्रतिपल साथ रहा करते हो
लेकिन होठों की वाणी से यह व्यवहार नहीं करते हो
एक दिवस अपने शब्दों में मेरा नाम पिरो भी दोगे
जिसको नयनों की भाषा में कहते हुए नहीं थकते हि

तुम उनवान गज़ल का मेरी बन कर एक बार आओ तो
सच कहता हूँ मीत सुखन की हर महफ़िल में छा जाऊंगा

19 comments:

Anonymous said...

...अति सुंदर भावाभिव्यक्ति..... दिल की गहराइयों में उतर आया आपके भाव.... समर्पित रहिये....

राजीव रंजन प्रसाद said...

सुबह सुबह आपका गीत पढ लिया-सारा दिन सार्थक हो गया। अनुपम रचना।

***राजीव रंजन प्रसाद

Satish Saxena said...

भावनाओं के खूबसूरत अभिव्यक्ति !

Dr. Amar Jyoti said...

बहुत ही सुन्दर। पर 'सुख़न की हर महफ़िल में'तो आप अभी भी छाये हुए हैं। बधाई।

seema gupta said...

यौं है विदित ह्रदय के मेरे प्रतिपल साथ रहा करते हो
लेकिन होठों की वाणी से यह व्यवहार नहीं करते हो
एक दिवस अपने शब्दों में मेरा नाम पिरो भी दोगे
जिसको नयनों की भाषा में कहते हुए नहीं थकते हि
" great composition and beautiful expression"

Regards

नीरज गोस्वामी said...

भावाभिव्यक्ति किन शब्दों में करूँ समझ नहीं पा रहा...अद्भुत रचना...वाह
नीरज

रंजू भाटिया said...

अदभुत रचना ..बहुत सुंदर लगी

फ़िरदौस ख़ान said...

मीत अगर तुम साथ निभाओ तो फिर गीत एक दो क्या है
मैं सावन बन कर गीतों की अविरल रिमझिम बरसाऊंगा

मीत तुम्ही तो भरते आये शब्दों से यह रीती झोली
तुमने ही तो बन्द निशा के घर चन्दा की खिड़की खोली
तुमने मन की दीवारों को भित्तिचित्र के अर्थ दिये हैं
सुधियों की प्यासी राहों में तुमने अगिन सुधायें घोलीं

बेहद उम्दा...

admin said...

तुम उनवान गज़ल का मेरी बन कर एक बार आओ तो
सच कहता हूँ मीत सुखन की हर महफ़िल में छा जाऊंगा!

बहुत प्यारा गीत है, मन को छू लेने वाला। बधाई।

मथुरा कलौनी said...

राकेश जी
कविता में पहाडों की ताजगी है तो मैदानी नदी का धीरगंभीर प्रवाह भी है। बधाई।

makrand said...

तुम दे दो विश्वास मुझे, मैं चन्दा बुला धरा पर लाऊं
दे दो रंग, तूलिका बन कर मैं पुरबाई को रँग जाऊं
एक इशारा दो दीपक में जलूं शिखा बन कर मैं खुद ही
तुम तट बन कर साथ निभाऒ, मैं लहरों के सुर में गाऊं

to be honest
u could edit it better as per u r
old written material
i just visited frist time on u r blog
regards

makrand said...

तुम दे दो विश्वास मुझे, मैं चन्दा बुला धरा पर लाऊं
दे दो रंग, तूलिका बन कर मैं पुरबाई को रँग जाऊं
एक इशारा दो दीपक में जलूं शिखा बन कर मैं खुद ही
तुम तट बन कर साथ निभाऒ, मैं लहरों के सुर में गाऊं

to be honest
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i just visited frist time on u r blog
regards

Udan Tashtari said...

मीत अगर तुम साथ निभाओ तो फिर गीत एक दो क्या है
मैं सावन बन कर गीतों की अविरल रिमझिम बरसाऊंगा


--अद्भुत रचना...बहुत जबरदस्त!! हम साथ निभा रहे हैं..आप बरसते चलिये यूँ ही रिमझिम!!

अमिताभ मीत said...

यौं है विदित ह्रदय के मेरे प्रतिपल साथ रहा करते हो
"लेकिन होठों की वाणी से यह व्यवहार नहीं करते हो
एक दिवस अपने शब्दों में मेरा नाम पिरो भी दोगे
जिसको नयनों की भाषा में कहते हुए नहीं थकते हि

तुम उनवान गज़ल का मेरी बन कर एक बार आओ तो
सच कहता हूँ मीत सुखन की हर महफ़िल में छा जाऊंगा"

क्या बात है भाई ....
अपना ही एक शेर याद आ गया :

"है दास्तान-ए-उम्र नातमाम अब तलक
बन के उन्वान आ, मैं इंतज़ार करता हूँ"

कंचन सिंह चौहान said...

है विदित ह्रदय के मेरे प्रतिपल साथ रहा करते हो
लेकिन होठों की वाणी से यह व्यवहार नहीं करते हो
एक दिवस अपने शब्दों में मेरा नाम पिरो भी दोगे
जिसको नयनों की भाषा में कहते हुए नहीं थकते हि

तुम उनवान गज़ल का मेरी बन कर एक बार आओ तो
सच कहता हूँ मीत सुखन की हर महफ़िल में छा जाऊंगा

kya kahu.n...? bahut sunadar..!

Puja Upadhyay said...

तुम उनवान गज़ल का मेरी बन कर एक बार आओ तो
सच कहता हूँ मीत सुखन की हर महफ़िल में छा जाऊंगा...bahut sundar, bahut khoobsoorat.

गौतम राजऋषि said...

...अभी-अभी फ़ुरसत में आपकी तमाम रचनायें पढ़ी.मन भीगा-भीगा सा बहुत कुछ लिखना चाहता है....मगर शब्दों के मसीहा के समक्ष ये तो सूरज के आगे दीप दिखाने जैसा होगा.हम आपके फ़ैन हो गये हैं.....

Shar said...

Guru ji,
Abhi-abhi pahli bar apka blog pada, comments dena cahti thi toh purani blogger identity/pw yaad nahin aaye. Naya ID khola toh 'verfication' code tha "MIRACLES".
Need I say more!!

Unknown said...

बहुत सुन्दर .....

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