कोई गीत नहीं गा पाता

शब्द अटक रह गये अधर पर, वाणी साथ न देने पाती
हो विक्षुब्ध मन मौन पड़ा है, कोई गीत नहीं गा पाता

एक अनिश्चय निगल रहा है उगी भोर की अरुणाई को
और दिशायें छेड़ रही हैं असमंजस की शहनाई को
आशंका के घने कुहासे में लिपटा दिखता है हर पथ
हो जाता भयभीत ह्रदय अब देख स्वयं की ही परछाईं

विषम परिस्थितियां सुरसा सी खड़ी हुईं फ़ैलाये आनन
समाधान को बुद्धिमता का रूप नहीं लेकिन मिल पाता

दहला जाता है मन को अब दिखता रंग गुलाबों वाला
बुना भाग्य की रेखाओं पर एक गूढ़ मकड़ी का जाला
विश्वासों की नींव ढही जाती है बालू के महलों सी
पीता हुआ रोशनी हँसता केवल घिरा अँधेरा काला

दिशाबोध के चिन्ह घुल गये कुतुबनुमा भी भ्रमित हुई है
मुड़ने लगीं राह भी वापिस, उनको पंथ नहीं मिल पाता

बिखराता है तिनके तिनके पंछी स्वयं नीड़ को अपने
और विवश नजरों को लेकर बीना करता खंडित सपने
अभिमन्यु घिर चक्रव्यूह में, मदद मांगता है जयद्रथ से
ओझा कौड़ी फ़ेंक, नाग को करता है आमंत्रित डँसने

पासों के षड़यंत्र बढ़ गये, और समर्पित हुआ युधिष्ठिर
इतिहासों की गाथाओं से कोई सबक नहीं मिल पाता

6 comments:

Udan Tashtari said...

पासों के षड़यंत्र बढ़ गये, और समर्पित हुआ युधिष्ठिर
इतिहासों की गाथाओं से कोई सबक नहीं मिल पाता

-बहुत ही सुन्दर!!

अब तो आपसे गा कर ही सुनेंगे भाई जी. जल्दी ही वापस पहुँचेंगे.

संगीता पुरी said...

हमेशा की ही तरह सुंदर प्रस्‍तुतिकरण ... बधाई।

Mohinder56 said...

राकेश जी आपकी गूढ अभिव्यक्ति लिये रचनाओं पर टिप्पणी करने के लिये शब्द नहीं मिल पाते..और सिर्फ़ वाह वाह कहने से दिल नहीं भरता..

लिखते रहिये हम पढने का रसास्वादन करते रहेंगे.. आभार

रंजना said...

पीडा जब घनीभूत हो मन प्राण को क्षुब्ध और विह्वल कर देती है तो सहज रूप में वह बरसकर बह जाने को आतुर हो जाती है...परन्तु सबके सामर्थ्य में यह नहीं होता की वह उसे सटीक अभिव्यक्ति देकर हल्का हो सके......ईश्वर ने संभवतः पवित्र और सरल ह्रदय जान , असीम अनुकम्पा दिखाते हुए आपको यह अद्वितीय क्षमता दी है...उसको नमन है...

यदि आप सा अभिव्यक्ति की शक्ति मिले तो,सब कुछ निचोड़ कर प्राणों को सदैव हल्का रखा जा सकता है.....

Shardula said...

कविता में इतना विषाद कविराज!!
परम सुन्दर, परन्तु ह्रदय विदारक . . . कल का पूरा दिन लग गया तब जा कर आज टिप्पणी देने को हाथ उठे!
हर पंक्ति अद्वितीय!!
पर ये पंक्ति साधारण बात हो कर भी भूली नहीं जा रही पता नहीं क्यों - "दहला जाता है मन को अब दिखता रंग गुलाबों वाला" .

हर लिखने वाला ये जानता है ऎसी कविता कोई हर्षित ह्रदय से नहीं लिखी जाती. आपके मन को जल्दी शान्ति मिले इसी कामना के साथ . . . सादर

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सुन्दर खूबसूरत गीत...........
खिलते हुवे बोल, शब्द सुन्दर, सार्थक.......अर्थ लाजवाब

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