बिना तुम्हारे साथ न देते

शब्द नहीं ढलते गीतों में स्वर ने भी विद्रोह किया है
बिना तुम्हारे साथ नयन का देते नहीं स्वप्न रातों में

मेंहदी महावर काजल कुंकुम सब की ही हैं क्वारी साधें
चूड़ी कंगन तगड़ी पायल बिछुवा रह रह अश्रु बहाते
कानों की लटकन रह रह कर प्रश्न पूछती है नथनी से
देखा कोई मेघदूत क्या टीके ने सन्देसा लाते

बाजूबन्द मौन बैठे हैं जैसे किसी बात के दोषी
करते रहते निमिष याद वे, जब सज रहते थे हाथों में

रंगत हुई तीज की पीली, सावन के झूले उदास हैं
गौरी मन्दिर की पगडंडी पग की ध्वनि सुनने की आतुर
रजनी गंधा नहीं महकती एकाकी होकर उपवन में
और बिलख कर रह जाता है कालिन्दी तट वंशी का सुर

पल पल पर उद्विग्न ह्रदय की बढ़ती जाती है अधीरता
अर्थ नहीं कुछ शेष बचा है आश्वासन वाली बातों में

देहरी याद करे अक्षत से जब की थी अभिषेक पगतली
अँगनाई है स्पर्श संजोये उंगलियों का रांगोली में
दीप दिवाली के नजरों में साध लिये हैं सिर्फ़ तुम्हारी
और विलग हो तुमसे सारे रंग हुए फ़ीके होली में

सम्बन्धों के वटवृक्षों पर उग आती हैं अमर लतायें
और तुम्हारे बिन मन जुड़ता नहीं तनिक रिश्तों नातों में

शून्य पार्श्व में देख स्वयं ही मुरझा मुरझा रह जाती है
यज्ञ वेदियों की लपटों की वामांगी आहुति की आशा
पृष्ठ खोलती नहीं ॠचायें, पूर्ण नहीं हो पाती स्वाहा
और बदलने लग जाती है मंत्रों की मानक परिभाषा

प्रश्न चिन्ह बन गैं तुम्हारे बिन अब वे सारी सौगंधें
बुनी गईं थीं एक साथ जो चले कदम अपने सातों में

6 comments:

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर गीत!

अमिताभ मीत said...

वाह ! बहुत सुन्दर !!
बहुत ही सुन्दर.

Shar said...

बिना तुम्हारे साथ नयन का देते नहीं स्वप्न रातों में

Shardula said...

"देखा कोई मेघदूत क्या टीके ने सन्देसा लाते"
"गौरी मन्दिर की पगडंडी पग की ध्वनि सुनने की आतुर"
"पल पल पर उद्विग्न ह्रदय की बढ़ती जाती है अधीरता
अर्थ नहीं कुछ शेष बचा है आश्वासन वाली बातों में"
"अँगनाई है स्पर्श संजोये उंगलियों का रांगोली में"
"और तुम्हारे बिन मन जुड़ता नहीं तनिक रिश्तों नातों में"
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अद्भुत!
नमन!
बस और क्या लिखा जाए ऐसे गीत के लिए.
हाँ, एक वहीदा जी का नृत्य है ना "गाईड" में उसकी याद आ गयी :)
"...बिन तेरे होली भी ना भाये . . ."

Udan Tashtari said...

देहरी याद करे अक्षत से जब की थी अभिषेक पगतली
अँगनाई है स्पर्श संजोये उंगलियों का रांगोली में
दीप दिवाली के नजरों में साध लिये हैं सिर्फ़ तुम्हारी
और विलग हो तुमसे सारे रंग हुए फ़ीके होली में

सम्बन्धों के वटवृक्षों पर उग आती हैं अमर लतायें
और तुम्हारे बिन मन जुड़ता नहीं तनिक रिश्तों नातों में

--अद्भुत विरह गीत ...आनन्द आ गया पढ़कर.

Kavi Kulwant said...

Khoobsurat

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