वह अनलिखा पत्र लिख डालूँ

आंखों में फिर तिर आये वे यादों की पुस्तक के पन्ने
बुदकी फ़िसली सरकंडे की कलमों से बनती थी अक्षर
प से होता पत्र, जिसे था लिखना चाहा मैने तुमको
जीवन की तख्ती पर जिसके शब्द रह गये किन्तु बिखर कर

शायद कल इक किरण हाथ में आकर मेरे कलम बन सके
सपना है ये, और तुम्हें मैं वह अनलिखा पत्र लिख डालूँ

फिर उभरे स्मॄति के पाटल पर धुंधले रेखाचित्र अचानक
सौगंधों के धागे कि्तने जुड़ते जुड़ते थे बिखराये
पूजा की थाली का दीपक था रह गया बिना ज्योति के
और मंत्र वे जो अधरों तक आये लेकिन गूँज न पाये

शायद पथ में उड़ी धूल में लिपटा हो कोई सन्देसा
सपना है ये, और बुझा मैं दीपक फिर वह आज जला लूँ

फिर आकर महकी हैं मन में गंधों भरी हवाये वे सब
जो कि तुम्हारे रची हथेली से उनवान लिया करती थीं
सांसों की गलियों में आकर जो धीमी आवाज़ लगाती
और इत्र की फ़ुहियों बन कर मुझसे बात किया करती थीं

शायद फिर से बही हवा में लिपटे वे ही गंध सुगन्धी
सपना है ये, और उन्हें मैं फिर से अपने गले लगा लूँ

देती हैं दस्तक आ आकर सुधि पर सुघर पदों की चापें
जिनका करते हुए अनुसरण, निशि में ओस झरा करती थी
तय करते मन का गलियारा, बन जाती थी धड़कन की धुन
और उमंगों की क्यारी में नूतन आस भरा करती थी

खिली धूप की परछाईं में फिर से उभरें वे पदचापें
सपना है ये, और उमंगों को मैं फिर से नया बना लूँ

7 comments:

Udan Tashtari said...

शायद कल इक किरण हाथ में आकर मेरे कलम बन सके
सपना है ये, और तुम्हें मैं वह अनलिखा पत्र लिख डालूँ

आह्ह!! कहाँ छुआ इस रचना ने..बहुत गहरे उतर कर. अद्भुत हमेशा की तरह!!

ओम आर्य said...

बहुत खुब ..........यह बहुत आपने भावाना के करीब लगी ....सुन्दर रचना

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन...wahwa..

Urmi said...

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

निर्मला कपिला said...

शायद पथ में उड़ी धूल में लिपटा हो कोई सन्देसा
सपना है ये, और बुझा मैं दीपक फिर वह आज जला लूँ
दिल को छू लेने वले भाव ऐसा तभी घटता है जब कवि सिर्फ कविता मे जीता है बहुत बहुत शुभकामनायें

पंकज सुबीर said...

शायद पथ में उड़ी धूल में लिपटा हो कोई सन्देसा
सपना है ये, और बुझा मैं दीपक फिर वह आज जला लूँ
देरी से आकर ये गीत पढ़ रहा हूं । फिर आकर महकी है मन में गंधों भरीं हवाएं वे सब जो कि तुम्‍हारी रची हथेली से उन्‍वान लिया करती थीं ।
पूरे गीत से सुगंध आ रही है कहीं मोगरे की तो कहीं रातरानी की ।
अनूठा गीत है ।

M VERMA said...

मैं वह अनलिखा पत्र लिख डालूँ
abhilasha ke sunder bhav wah wah

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