हो मीत तुम्हारा ही चौबारा

जब जब भी बहार का झोंका गुजरा उपवन की गलियों से
चूम कपोलों को कलियों के लिख कर जाता नाम तुम्हारा


शाखों पर कोमल पत्तों ने लेकर बासन्ती अँगड़ाई
जब जब अपनी पलकें खोलीं, तब तब स्वप्न हवा में बिखरे
और उमड़ती हुई गंध की एक टोकरी जब छितराई
तब तब धारे बही हवा के, डूब रंग में हुए सुनहरे


अलसाये पल भी उस पल में ऐसे ही प्रतीत होते हैं
जैसे ढली दुपहरी में हो मीत तुम्हारा ही चौबारा


नदिया की धारा से बतियाती हैं जब बरखा की बूंदें
या पनघट पर कलसी बोले कुछ चूड़ी वाले हाथों से
सप्त-स्रोत से संचित होकर अभिमंत्रित होता कहता है
अभिषेकों के पल में जो, जल चढ़ता प्रतिमा के माथों पे


उनके सब शब्दों में सुर में जो कुछ मिला समाहित होकर
उसे प्रीत डूबे अधरों ने ही तो है हर बार उचारा


पवन पालकी में बिठला कर विदा गंध को करता है जब
फूल नहीं कुछ भी कह पाता अधर थरथरा रह जाते हैं
विचलित हो पराग के कण भी जब चल देते पीछे पीछे
उस पल तितली भंवरे आकर जो कुछ उनको समझाते हैं


वे सब कही अनकही बातें और अवर्णित पल हैं जितने
इतिहासों की गाथाओं की उन पर छाप लगी दोबारा


यादों की बारिश में भीगे या सुधियों की धूप सेंकते
मन के आवारा पल आंखों में कुछ चित्र खींच देते हैं
एक विभोरित अनुभूति की चंचल सी अंगड़ाई के पल
दिवास्वप्न की उगती प्यासों को दे नीर सींच देते हैं


अपने हुए एक मुट्ठी भर उन निमिषों की संचित थाती
रहती है अंगनाई में बन, निर्देशन का एक सितारा

6 comments:

श्यामल सुमन said...

नदिया की धारा से बतियाती हैं जब बरखा की बूंदें

वाह राकेश भाई - जवाब नहीं आपका।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Udan Tashtari said...

अलसाये पल भी उस पल में ऐसे ही प्रतीत होते हैं
जैसे ढली दुपहरी में हो मीत तुम्हारा ही चौबारा

--बहुत जबरदस्त!! और हमेशा की तरह- अद्भुत भाई जी!! गजब कर देते हो आप हर बार!

वाणी गीत said...

बहुत खूब ..!!

निर्मला कपिला said...

यादों की बारिश में भीगे या सुधियों की धूप सेंकते
मन के आवारा पल आंखों में कुछ चित्र खींच देते हैं
एक विभोरित अनुभूति की चंचल सी अंगड़ाई के पल
दिवास्वप्न की उगती प्यासों को दे नीर सींच देते है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है और शब्द शिल्प लाजवाब है बौत बहुत बधाई

पंकज सुबीर said...

पवन पालकी में बिठला कर विदा गंध को करता है जब
फूल नहीं कुछ भी कह पाता अधर थरथरा रह जाते हैं
विचलित हो पराग के कण भी जब चल देते पीछे पीछे
उस पल तितली भंवरे आकर जो कुछ उनको समझाते हैं
फूल से खुश्‍बू के चले जाने की व्‍यथा को बहुत ही सुंदर शब्‍दों में अभिव्‍यक्‍त किया है । पूरा का पूरा शब्‍द चित्र मानों आंखों के सामने आ गया । बहुत सुंदर ।

robin said...

विचलित हो पराग के कण भी जब चल देते पीछे पीछे
उस पल तितली भंवरे आकर जो कुछ उनको समझाते हैं

ati sundar....sampurnataa chhote se khand mein :)

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