दीपमालिका अब ऐसी हो

जो चषक हाथ धन्वन्तरि के थमा, नीर उसका सदा आप पाते रहें
शारदा के करों में जो वीणा बजी, तान उसकी सदा गुनगुनाते रहें
क्षीर के सिन्धु में रक्त शतदल कमल पर विराजी हुई विष्णु की है प्रिया
के करों से बिखरते हुए गीत का आप आशीष हर रोज पाते रहें
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दीप दीपावली के जलें इस बरस
यूँ जलें फिर न आकर अँधेरा घिरे
बूटियाँ बन टँगें रात की ओढ़नी
चाँद बन कर सदा जगमगाते रहें

तीलियाँ हाथ में आ मशालें बनें
औ तिमिर पाप का क्षीण होता रहे
होंठ पर शब्द जयघोष बन कर रहें
और ब्रह्मांड सातों गुँजाते रहें

 
दांव तो खेलती है अमावस सदा
राहु के केतु के साथ षड़यंत्र कर
और अदॄश्य से श्याम विवरों तले
है अँधेरा घना भर रही सींच कर
द्दॄष्टि के क्षेत्र से अपनी नजरें चुरा
करती घुसपैठ है दोपहर की गली
बाँध कर पट्टियां अपने नयनों खड़ी
सूर समझे सभी को हुई मनचली

 
उस अमावस की रग रग में नूतन दिया
इस दिवाली में आओ जला कर धरें
रश्मियां जिसकी रंग इसको पूनम करें
पांव से सर सभी झिलमिलाते रहें

 
रेख सीमाओं की युग रहा खींचत
आज की ये नहीं कुछ नई बात हैअ
और सीमायें, सीमाओं से बढ़ गईं
जानते हैं सभी, सबको आभास है
ये कुहासों में लिपट हुए दायरे
जाति के धर्म के देश के काल के
एक गहरा कलुष बन लगे हैं हुए
सभ्यता के चमकते हुए भाल पे

ज्योति की कूचियों से कुहासा मिटा
तोड़ दें बन्द यूँ सारे रेखाओं के
पीढ़ियों के सपन आँख में आँज कर
होंठ नव गीत बस गुनगुनाते रहें

 
भोजपत्रों पे लिक्खी हुई संस्कॄति
का नहीं मोल कौड़ी बराबर रहा
लोभ लिप्सा लिये स्वार्थ हो दैत्य सा
ज़िन्दगी भोर से सांझ तक डँस रहा
कामनायें न ले पाई सन्यास है
लालसा और ज्यादा बढ़ी जा रही
देव के होम की शुभ्र अँगनाई में
बस अराजकता होकर खड़ी गा रही

आओ नवदीप की ज्योति की चेतना
का लिये खड्ग इनका हनन हम करें
और बौरायें अमराईयाँ फिर नई
गंधमय हो मरुत सरसराते रहें

4 comments:

Shar said...

दीप दीपावली के जलें इस बरस
यूँ जलें फिर न आकर अँधेरा घिरे

तीलियाँ हाथ में आ मशालें बनें
औ तिमिर पाप का क्षीण होता रहे
होंठ पर शब्द जयघोष बन कर रहें
और ब्रह्मांड सातों गुँजाते रहें

दांव तो खेलती है अमावस सदा...

..बाँध कर पट्टियां अपने नयनों खड़ी
सूर समझे सभी को हुई मनचली

ये कुहासों में लिपट हुए दायरे
जाति के धर्म के देश के काल के
एक गहरा कलुष बन लगे हैं हुए
सभ्यता के चमकते हुए भाल पे

और बौरायें अमराईयाँ फिर नई
गंधमय हो मरुत सरसराते रहें
Oh! Kya geet hai Guruji! Sarvottam!

Udan Tashtari said...

अति सुन्दर!!

सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

-समीर लाल ’समीर’

निर्मला कपिला said...

इस लाजवाब रचना के लिये और दीपावली पर्व की आपको शुभकामनायें। आपकी रचना ने दीपावली के रंग निखार दिये हैं
आओ नवदीप की ज्योति की चेतना
का लिये खड्ग इनका हनन हम करें
और बौरायें अमराईयाँ फिर नई
गंधमय हो मरुत सरसराते रहें
सुन्दर संदेश बधाई

नितिन | Nitin Vyas said...

आपको और आपके परिवार, मित्रों को दीवाली की ढेर सारी शुभकामनायें.

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