गीत कैसे लिखूं

तीलियां घिसते घिसते थकीं उंगलियां


वर्त्तिका नींद से जाग पाई नही

शब्द दस्तक लगाते रहे द्वार पर

सुर ने कोई गज़ल गुनगुनाई नहीं

आपका है तकाजा रचूँ गीत मैं

चांदनी की धुली रश्मियों से लिखे

गीत कैसे लिखूं आप ही अब कहें

जब कि पायल कोई झनझनाई नहीं





***************************





कुछ नये चित्र बनने लगे आँख में

कुछ नई गंध बसने लगी साँस में

कुछ नई आ मिली और अनुभूतियाँ

कुछ नये पंथ सजने लगे पाँव में

सोचने मैं लगा क्या अचानक हुआ

एक पाखी ने आ कर ये मुझसे कहा

कल जो सन्देश थी प्रीत लेकर गई

उसका उत्तर लिये आ रही है हवा

8 comments:

Udan Tashtari said...

कल जो सन्देश थी प्रीत लेकर गई
उसका उत्तर लिये आ रही है हवा ..

ये बड़ा भला हुआ भाई जी..यहाँ के तो सारे बैरंग लौट आये...बेहतरीन रही रचना!!

Himanshu Pandey said...

पहली दो पंक्तियाँ ही सम्मोहित कर गयीं । शब्दों का इतना सुन्दर प्रयोग और भावों का सम्मोहित रूप - मैं तो निवृत्त ही नहीं हो पाता आपके गीतों के प्रभाव से । आभार ।

mehek said...

आपका है तकाजा रचूँ गीत मैं

चांदनी की धुली रश्मियों से लिखे

गीत कैसे लिखूं आप ही अब कहें

जब कि पायल कोई झनझनाई नहीं

behad sunder geet.waah,har bhav mann ko mehssus hua.

सदा said...

गीत कैसे लिखूं आप ही अब कहें

जब कि पायल कोई झनझनाई नहीं

शब्‍द रचना ने आत्‍ममुग्‍ध कर दिया बे‍हतरीन अभिव्‍यक्ति, आभार

Randhir Singh Suman said...

nice

विनोद कुमार पांडेय said...

Ultimate..

वाणी गीत said...

गीत कैसे लिखूं ....जवाब खुद आपने दी ही दिया ...अगली ही पंक्तियों में ..

कल जो सन्देश थी प्रीत लेकर गई
उसका उत्तर लिये आ रही है हवा ...
प्रीत का सन्देश और उत्तर लेकर आती हवा ...गीत रच ही गया ना ...!!

vandana gupta said...

तीलियां घिसते घिसते थकीं उंगलियां


वर्त्तिका नींद से जाग पाई नही

शब्द दस्तक लगाते रहे द्वार पर

सुर ने कोई गज़ल गुनगुनाई नहीं


behtreen bhavon se saji rachna......adbhut shabd sanyojan.

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...