रच गई है स्वप्न मेंहदी से

जब तुम्हारे चित्र आकर छू गये हैं दॄष्टि का नभ
रच गई है स्वप्न मेंहदी से नयन की तब हथेली
चेतना की वीथियों में पांव रखती छवि तुम्हारी
देहरी को लांघती है जिस तरह दुल्हन नवेली

और रँग जाती कई रांगोलियाँ सहसा ह्रदय में
ड्यौढ़ियों पर दीप जलने लग गये दीवालियों के

कर नये अनुबन्ध बिन्दी जब नयन की रश्मियों से
इन्द्रधनुषी उंगलियों से गुदगुदाती नैन मेरे
हीरकनियां अनगिनत तब झिलमिलाती धमनियों में
कल्पना में नॄत्य करते हैं अगन के सात फ़ेरे

और सिन्दूरी क्षितिज की रेख के प्रतिबिम्ब अनगिन
आ सँवरने लग गये हैं कुन्तलों की डालियों पे

उंगलियों के पोर छूने के लिये पल पल फ़िसलरा
रेशमी आंचल, ठिठकता एक पल को जब करों पर
उस घड़ी बनते हजारों चित्र सतरंगे सुनहरे
कल्पना के पाखियों के चन्द चितकबरे परों पर

तब ह्रदय की वीथियों के एक कोने से उमड़ते
भाव आ लगते सिमटने भावना की थालियों पे

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10 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

ye kavita bhi laazwaab..rakesh ji mujhe to aapki har kavita badhiya lagati hai comment to isliye karata hoon ki bas meri shubhkaamnayen aap tak pahunch jaye...

Himanshu Pandey said...

"और सिन्दूरी क्षितिज की रेख के प्रतिबिम्ब अनगिन
आ सँवरने लग गये हैं कुन्तलों की डालियों पे"

यह अभिव्यक्ति किसे न बाँधे ! मुदित मन विभोर होकर पढ़ रहा है । अद्भुत कल्पनाशक्ति -अद्भुत विधान । आभार ।

निर्मला कपिला said...

आपको विवाह की वर्षगाँठ पर बहुत बहुत मुनारक कविता बहुत सुन्दर है शुभकामनायें

Dr. Amar Jyoti said...

मनोरम अभिव्यक्ति। सुकोमल भाव।
हर्दिक बधाई।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

हाँ, छ्न्द आकर स्वयं सँवर गए हैं।

विवाह की वर्षगाँठ पर शुभकामनाएँ।

anuradha srivastav said...

सुन्दर अभिव्यक्ति........

गौतम राजऋषि said...

"रँग जाती कई रांगोलियाँ सहसा ह्रदय में"

...एक लाजवाब गीत राकेश जी उपलक्ष्यानुसार।
शादी की सालगिरह पर खूब-खूब बधाईयां!!

Satish Saxena said...

बहुत खूब भाई जी ! शादी की सालगिरह मुबारक हो !

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत सुन्दर..!! Prastitiसालगिरह मुबारक हो !

- सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'

Shardula said...

Satrange bhee, sunahare bhee? :)

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