क्या भूलूं क्या याद रहा है

दोछत्ती पर रखी हुई थी
एक टोकरी यादों वाली
आज सफ़ाई करते करत
झाडन उसको जरा छू गया
बीते हुए दिवस तितली ब
सजे कक्ष की दीवारों पर
कल का खर्च हुआ हर इक पल
फिर से संचित आज हो गया
और लगे नयनों में तिरने
बरगद,पीपल, वे चौपालें
वे बिसायती वे परचूनी
औ; लकड़ी कोयले की टालें
नानबाई वह चौबुर्जा का
वह नुक्कड़ वाला हलवाई
गरम जलेबी और इमरती
खुरचन रबड़ी दूध मलाई
फिर से उड़े याद के पंछी
मन अम्बर उड़ कर कनकौए
धोबी माली और जुलाह
कहते हुए कहानी नऊए
लड़िया,रिक्शे,बग्घी तांगे
टेम्पो ठेला और फ़टफ़टिया
ओझा,पीर,सयाने,पंडित
ईदगाह, बेगम का तकिया
माली मालिन, ग्वाले ग्वालिन
वे हकीमजी वह पंसारी
वो अफ़ीमची, वह भंगेड़ी
चौपड़ पर बैठा नसवारी
कुंए,पोखर,ताल, तलैय्या
भड़भूजा,भटियारी तेली
सीपी शंख जड़े दरवाज़े
हल्दी रंग में छपी हथेली
बनते हुए चाक पर अविरल
दिवले,कुल्लड़ और सकोरे
मनिहारी चूड़ियां लाख की
सर्राफ़ा, चान्दी के तोड़े

पर क्यों अब इनको अपनापन
देने से मन घबराता है
शाखा से बिछुड़ा पत्ता फिर
कब शाखा से जुड़ पाता है

इसीलिये फिर से समेट कर
एक नई चादर ओढ़ा दी
और दिलासा दिया स्वयं को
वे यादें सब सपना ही थीं

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत दिनों बाद आये और एक बर में कमी पूरी कर गये...तभी तो आप महारथी कहलाये/ :)



यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

विनोद कुमार पांडेय said...

कुछ भूलें बिसरे यादों की कड़ियाँ दिल छू गयी ..हर एक चीज़ जो हमारे अतीत से जुड़ी हुई है खुद में एक खूबसूरत कहानी है थोडी खुशी और थोडा गम लिए हुआ पर जब भी याद आती है दिल भर जाता है..कुछ भी नही छोड़ा आपने कितनी खूबसूरती से कविता को भाव दिया है लाज़वाब..है..राकेश जी नमन है आपकी लेखनी को और आप को भी ...प्रणाम स्वीकारें..

RAJNISH PARIHAR said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने ..मेरी शुभकामनायें..

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