समा गया तुम में

जो भी पल था मेरा अपना समा गया तुम में
शेष नहीं है पास मेरे कुछ कहने को अपना

समय सिंधु ने सौंपी थी जो लहरों की हलचल
एक आंजुरि में संचित जितना था,  गंगाजल
मुट्ठी भर जो मेह सावनी बदल से माँगा  

और हवा से आवारा सा इक झोंक पागल

पास तुम्हारे आते ही सब समां गया तुम में 
नहीं रह सका पास मेरे आँखों का भी सपना

अर्जित किया उम्र ने जितना संस्कृतियों का ज्ञान
और प्राप्त जो किया सहज नित करते अनुसन्धा
दिवस निशा चेतन अवचेतन  के सारे पल क्षण
विश्वासों का निष्ठा का सब अन्वेषित विज्ञान

पलक झपक में यह सब कुछ ही समा गया तुम में
अकस्मात् ही घटित हो गई लगा कोई घटना


कल्पयुगों मन्वन्तर का जो रचा हुआ इतिहास 
पद्मनीलशंखों में बिखरी चिति बन कर जो सांस 
लक्ष कोटि नभ गंगाओं के सृजन विलय का गतिक्रम 
सूक्ष्म बिंदु सेपरे कल्पना क्षितिजों तक अहसास 

जो कुछ तुमसे शुरू हुआ था  साथ समय के प्रियतम 
समा गया तुम में  अब बाकी कोई नहीं संरचना 

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