जितनी संचारों की सुविधा बढी, अकेले उतने हैं हम
केवल साथ दिया करते है अपने ही इक मुट्ठी
भर
गम
राजमार्ग पर दौड़ रही है उद्वेलित बेतार तरंगें
पगडंडी पर अंतर्जाल लगाये बैठा अपने डेरे
हाथों में मोबाइल लेकर घूम रहा हर इक यायावर
लेकिन फिर भी एकाकीपन रहता है तन मन को घेरे
घँटी तो बजती है पर आवाज़ न कोई दिल को छूती
मन मरुथल की अंगनाई मे दिखते अपनेपन के बस भ्रम
हरकारे के कांधे वाली झोली रिक्त रहा करती है
मेघदूत के पंथ इधर से मीलो दूर कही मुड़ जाते
पंख पसारे नही कबूतर कोई भी अब नभ में जाकर
बोतल के संदेशे लहरों की उंगली को थाम
न पाए
दुहराना
चाहा
अतीत के साधन आज नई दुनिया में
असफल होकर बिखर गए पर सारे के सारे
ही
उद्यम
बडी दूर का संदेशा हो या फिर कोई
कही
निकट का
सुबह
उगी
जो आस टूट कर बिखर गई संध्या के ढलते
टेक्स्ट फेसबुक ट्विटर फोन ईमेल सभी पर बाढ़ उमड़ती
लेकिन कोई एक नही है जिसको हम अपना कह सकते
संचारों के उमड़ रहे इन बेतरतीबी सैलाबों में
सब कुछ बह जाता है, रहती केवल सन्नाटे की सरगम
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